Wednesday, February 8, 2012
गोरा bai
Thursday, August 26, 2010
Tuesday, July 13, 2010
सवेरा
Monday, December 21, 2009
सूरदास
जेठ सुदी ८ संवत २०६६
अंग्रेजी तारीख ३१ मई 2००९
वार रविवार ७.२२ प्रातः
सूरदास कौन है? सूरदास वो नहीं है जो जन्मांध है या जिसके वाह्य चक्षु कम नहीं करते है। बल्कि सूरदास हम सभी है जब-
=हम अन्याय होते देखते हुए भी अपना मुह घुमा लेते है कौन झंझट मोल ले।
=हम किसी को पीड़ित देखकर भी पीड़ित नहीं होते।
=हम किसी को जमीं पर तिल -तिल मरते हुए देखते है।
=हम किसी फूल को मुस्कराते देख हँसते नहीं।
=हम किसी बहते हुए झरने को देख मन मयूर को नाचने देते नहीं।
=हम किसी बहन बेटी के विवाह में अपना तन-मन-धन देते नहीं।
=हम किसी पढाई के इच्छुक को मदद देते नहीं।
=हम किसी माँ के अंतर्मन के आंसुवो को देख सकते नहीं।
=हम किसी के दुःख को बाँटने की इच्छा रखते नहीं।
=हम किसी के सुख को बढ़ने में सामिल होते नहीं।
=हम नर में नारायण धुन्ध्ते नहीं।
=हम धन दौलत में सुख की कामना करते है।
=हम माँ की ममता,बहन के प्यार और बेटी की चाहना को पढ़ पते नहीं।
हम उस समय सूरदास होते नहीं जब-
=हम सभी के सुर में सुर मिला लेते है।
=हम शिव की तरह क्रोध के जहर को भी अपने गले लगा लेते है।
=हम सभी में राम-कृष्ण-राधा-सीता को देखते है।
=हमारे अंतर्चाक्शु काम करना शुरू कर देते है।
एक सूरदास ने कहा था-
"बांह छुडाये जाट हो निर्बल जन के मोय
हृदय से जब जावोगे तब जानुगो तोय"
पते की bat
बात पते की,पता नहीं-
क्यूँ नहीं पता-क्या पता था?
किसका पता था-पता है तो ये की
न तेरा पता था-न अपना पता था
न कल का पता था-न इस पल का पता था।
न होनी का पता था-न अनहोनी का पता था।
न अनुभव का पता था-न समय का पता था।
न बचपन का पता था-न जवानी का पता था-न बुढ़ापे का पता था।
न खाने का पता था-न सोने का पता था।
न हसने का पता था-न रोने का पता था।
इस पते को अंत करने का पता भी लापता है।
सोच की खोज
सोच रहा था -की क्या और कैसे खोजू?
इसी सोच की खोज में और खोज की सोच में
खो गया वो-सो गया वो-न जाने क्यों और कैसे