Wednesday, February 8, 2012

गोरा bai

माघ सुदी पूर्णिमा के दिन १०.०९ दिन में आप अपनी माता सौभाग्याकंक्षिनी सुचिता के गर्भग्रह में नौ मास रहकर ऑपरेशन से माक्स हॉस्पिटल में पधारी .आपका वजन उस समय २.०६० किलो था.आपकी फोटो उस समय की लगा दी है.आप देखने में अपनी भुवाजी सौभाग्याकंक्षानी ऋतू की तरह दुबली ,गौरी,लम्बी लग रही है। अभी आप कितने रूप परिवर्तन करेंगी .राम जाने.

Thursday, August 26, 2010

मेरा बचपन

बचपन की यादे जब जब मन व्यथित होता है तब तब तडपती है कान्हा

गया वो समय

Tuesday, July 13, 2010

सवेरा

सूर्योदय होने से ही सवेरा नहीं होता है। हम जब अपने अन्दर के कलुषित विचारो को, भावनाओ को निकाल फेंकने के लिए दृढ संकल्प होते है उसी समय हमारे अन्दर प्रकाश जगमगा जाता है और उस प्रकाश के कारन अंधकार दूर होकर सवेरे की धुप निकल पड़ती है । आइये हम सब मिलकर ऐसे सवेरे का स्वागत करे.

Monday, December 21, 2009

सूरदास

जेठ सुदी ८ संवत २०६६

अंग्रेजी तारीख ३१ मई 2००९

वार रविवार ७.२२ प्रातः

सूरदास कौन है? सूरदास वो नहीं है जो जन्मांध है या जिसके वाह्य चक्षु कम नहीं करते है। बल्कि सूरदास हम सभी है जब-

=हम अन्याय होते देखते हुए भी अपना मुह घुमा लेते है कौन झंझट मोल ले।

=हम किसी को पीड़ित देखकर भी पीड़ित नहीं होते।

=हम किसी को जमीं पर तिल -तिल मरते हुए देखते है।

=हम किसी फूल को मुस्कराते देख हँसते नहीं।

=हम किसी बहते हुए झरने को देख मन मयूर को नाचने देते नहीं।

=हम किसी बहन बेटी के विवाह में अपना तन-मन-धन देते नहीं।

=हम किसी पढाई के इच्छुक को मदद देते नहीं।

=हम किसी माँ के अंतर्मन के आंसुवो को देख सकते नहीं।

=हम किसी के दुःख को बाँटने की इच्छा रखते नहीं।

=हम किसी के सुख को बढ़ने में सामिल होते नहीं।

=हम नर में नारायण धुन्ध्ते नहीं।

=हम धन दौलत में सुख की कामना करते है।

=हम माँ की ममता,बहन के प्यार और बेटी की चाहना को पढ़ पते नहीं।

हम उस समय सूरदास होते नहीं जब-

=हम सभी के सुर में सुर मिला लेते है।

=हम शिव की तरह क्रोध के जहर को भी अपने गले लगा लेते है।

=हम सभी में राम-कृष्ण-राधा-सीता को देखते है।

=हमारे अंतर्चाक्शु काम करना शुरू कर देते है।

एक सूरदास ने कहा था-

"बांह छुडाये जाट हो निर्बल जन के मोय
हृदय से जब जावोगे तब जानुगो तोय"



सूरदास

पते की bat

प्रिय श्रीकांत की रचना इस प्रकार है-
बात पते की,पता नहीं-
क्यूँ नहीं पता-क्या पता था?
किसका पता था-पता है तो ये की
न तेरा पता था-न अपना पता था
न कल का पता था-न इस पल का पता था।
न होनी का पता था-न अनहोनी का पता था।
न अनुभव का पता था-न समय का पता था।
न बचपन का पता था-न जवानी का पता था-न बुढ़ापे का पता था।
न खाने का पता था-न सोने का पता था।
न हसने का पता था-न रोने का पता था।
इस पते को अंत करने का पता भी लापता है।

सोच की खोज

खोज रहा था-की क्या और कैसे सोचु?
सोच रहा था -की क्या और कैसे खोजू?
इसी सोच की खोज में और खोज की सोच में
खो गया वो-सो गया वो-न जाने क्यों और कैसे